बॉलीवुड फिल्मों के हीरो की तरह उभरा अतीक और फिर अंत!

दिलों में खौफ भी और प्यार भी, 41 साल उसके इशारों पर नाचता रहा प्रयागराज का कारोबार, जानिए पूरी कहानी

अजय शुक्ल, प्रयागराज

Atiq Ahmed Story: अतीक अहमद की कहानी बॉलीवुड थ्रिलर की तरह है। पूर्व सांसद अतीक अहमद का जन्म साल 1962 में इलाहाबाद के चकिया इलाके में गरीब गद्दी (पसमांदा मुस्लिम) परिवार में हुआ था। उसके पिता फिरोज अहमद तांगा चलाकर गुजर-बसर करते थे। जैसे बॉलीवुड फिल्मों में एक गरीब घर का लड़का खलनायक टाइप का हीरो होता है। अतीक हाईस्कूल में फेल हो गया। खर्च के लिए पैसा नहीं था, तो इलाहाबाद से गुजरने वाली मालगाड़ियों से कोयला चुराकर अपना खर्च पूरा करने लगा। उस पैसे से दोस्तों की भी मदद करता। धीरे-धीरे उसके साथ कई लड़के जुड़ गये। कुछ वक्त बाद उसने रेलवे के कबाड़ का लिए ठेका लेने का फैसला किया। उस वक्त उसने कुछ लोगों को धमकाया, यहीं से उसका अपराध की दुनिया में आगाज हुआ।

साल 1970 के दशक में चांद बाबा नाम के गुंडे का आतंक होता था। वो बनियों को धमकाकर वसूली करता था। वो राजनेताओं से भी वोट का सौदा करता था क्योंकि उसके डर से कुछ वोट डालने नहीं जाते या फिर कुछ लोग उसके मुताबिक डालते थे। ऐसे में महज 17 साल की उम्र के अतीक के बढ़ते दबदबे के देखकर कई व्यापारियों और राजनेताओं ने उसे शह देना शुरू किया। पुलिस और राजनेताओं के इशारे पर अतीक ने 1979 में पहली हत्या चांद बाबा की की। इसके बाद उसका दबदबा कायम हो गया और वो ठेके-पट्टे करने लगा। इससे उसकी गरीबी दूर हुई तो, उसने भी दर्जनों घरों के चूल्हे चौके चलाने में मदद की, तमाम युवाओं को रोजगार दिलाने में मदद की। अब वो इलाके का रॉबिन हुड बन चुका था। इसके साथ ही उसका गैंग बन गया और उसके गैंग से कई गैंगेस्टर भी डरने लगे। धीरे-धीरे उसका दबदबा कभी पंडित जवाहर लाल नेहरू की लोकसभा सीट रहे फूलपुर इलाके में बढ़ा और कौशाम्बी तक फैल गया। साल 1989 में अतीक अहमद के सबसे बड़े दुश्मन शौकत इलाही को पुलिस ने मुठभेड़ में मार दिया गया, माना जाता है कि अतीक ने तब पुलिस से इस एन्काउंटर का सौदा किया था। इसके बाद अतीक इलाके का एकमात्र डॉन हो गया। 1989 में कांग्रेस के खिलाफ लहर चल रही थी, वीपी इलाहाबाद में कांग्रेस को खत्म करने का अभियान चला रहे थे, तब अतीक ने इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से आजाद चुनाव लड़ा और वहां से कांग्रेस को खत्म करके पहली जीत हासिल की।

अतीक का सियासी सफर

जब 1989 में अतीक आजाद विधायक बनकर विधानसभा पहुंचा, तो उसका कद बहुत बढ़ गया क्योंकि उस वक्त जनता दल की यूपी में लहर थी। उसका प्रभाव देखकर जनता दल ने उसे लपक लिया और फिर जब समाजवादी पार्टी बनी तो उसे वहां जगह मिली। इसके बाद वो लगातार पांच बार विधायक चुना गया। आखिरी बार वो सोनेलाल पटेल के अपना दल से प्रदेश अध्यक्ष बनकर विधानसभा पहुंचा। यह वही अपना दल है जो भाजपा का केंद्र और राज्य सरकार में सहयोगी दल है।
मुलायम सिंह यादव के मनाने पर वो दोबारा समाजवादी पार्टी में चला गया। 2004 के आम चुनाव में उसने समाजवादी पार्टी से ऐतिहासक फूलपुर लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कराई और सांसद बनकर लोकसभा पहुंच गया। अतीक के दिल्ली जाने से इलाहाबाद पश्चिम सीट खाली हो गई, तो 2005 में अतीक ने वहां से अपने भाई असरफ को उतारा मगर बसपा के राजू पाल ने उसे चार हजार वोटों से हरा दिया और सीट पर कब्जा कर विधायक बन गया। राजू पाल ने विधायक बनते ही पूजा पाल से शादी की और शादी के जश्न में उसने मायावती की शह पर अतीक के खिलाफ माहौल बनाना शुरू किया। बस फिर क्या था, 9वें दिन 25 जनवरी 2005 को राजू दो गाड़ियों के काफिले के साथ अपने घर नीवां जा रहा था। वह खुद गाड़ी चला रहा था और बगल वाली सीट पर दोस्त सादिक की बीवी रुखसाना बैठी थी। पीछे संदीप यादव और देवीलाल असलहों के साथ बैठे थे। पीछे की स्कॉर्पियो में भी चार असलहाधारी बैठे थे। उस वक्त उसकी दौड़ा-दौड़ाकर हत्या कर दी गई थी। यहीं से अतीक के लिए समस्याओं का दौर शुरू हुआ। बहराल अतीक का दबदबा और भी बढ़ गया। उसी केस में 24 फरवरी को मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या कर दी गई। भाजपा ने राजू पाल की बीवी को वहां से विधायक बनवा दिया था। इस पर भाजपा नेताओं ने अतीक के होने से कई सीटों पर खतरा देखते हुए उसे खत्म करने की योजना तैयार की और नतीजा आपके सामने है।

राजू पाल की हत्या, मदरसा विवाद तोड़ा सामराज्य
इलाहाबाद पुलिस ने 2005 में राजू पाल की हत्या के आरोप में सांसद अतीक अहमद को गिरफ्तार किया गया था। तीन साल जेल में रहने के बाद उसे जमानत मिली। अतीक चाहे जेल में रहा हो या बाहर उसका दबदबा सदैव कायम रहा। इलाहाबाद के एक मदरसे की कुछ छात्राओं के सामूहिक बलात्कार में कथित तौर पर अतीक अहमद के भाई सहित कुछ लोगों के शामिल होने के आरोप में अपने लोगों को बचाने का आरोप लगा था। इससे पूरे समाज में अतीक के परिवार पर आक्रोश फैल गया तो समाजवादी पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया। ये उस वक्त हुआ जब बसपा मायावती की अगुआई में यूपी में पूर्ण बहुमत से सत्ता में लौटी थीं, हालांकि माना जाता है कि यह साजिश मायावती ने राजूपाल का बदला लेने और अतीक परिवार को हराने के लिए रची थी। सत्ता और पुलिस के दबाव में अतीक और उसके विधायक भाई ने अतीक ने 2008 में आत्मसमर्पण किया और जेल चले गये।

जब सियासत में कमजोर पड़ा अतीक परिवार

कहते हैं कि माफिया जैसे ऊपर चढ़ता है वैसे ही उसका पतन होता है। प्रतापगढ़ से अपना दल के प्रत्याशी के रूप में अतीक अहमद ने 2009 का संसदीय चुनाव लड़ा मगर वो हार गये। चुनावी हार के बाद भी जरायम की दुनिया में उनका दबदबा कम नहीं हुआ, क्योंकि यह तो सिर्फ मायावती के दबाव का खेल था। 2012 में ही अतीक ने विधानसभा चुनाव में जेल से नामांकन भरा। उसने जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, तो 10 जजों ने उसकी जमानत अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि वो उनके वकील रह चुके हैं। हालांकि 11वें जज ने मामले को सुना और उसे जमानत दे दी, मगर मदरसा कांड के आरोप से उसका समाज भी दो फाड़ था तो वह बसपा प्रत्याशी राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से चुनाव हार गया। एक साल बाद 2013 में अतीक को जमानत मिल गई। उसने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में श्रावस्ती से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन मोदी लहर में हार गया। दिसंबर 2016 में अतीक और उसके सहयोगियों ने एक ईसाई अल्पसंख्यक संस्थान के कर्मचारियों पर हमला किया। उन्होंने दो छात्रों को नकल करते पकड़े जाने के बाद परीक्षा देने से रोक दिया था। ये सारे करतूत कैमरे में कैद हो गए थे।

जनवरी 2017 में अखिलेश यादव ने पार्टी में सभी अधिकार अपने हाथ में ले लिये तो उन्होंने अपनी छवि सुधारने के लिए अतीक अहमद का टिकट काट दिया। जब अतीक को गिरफ्तार नहीं करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी यूपी पुलिस को जमकर फटकार लगाई थी, इसके बाद अतीक की गिरफ्तारी हुई और तब से अतीक जेल में ही था। मार्च 2017 में भाजपा सरकार में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने ‘अपराधियों के साम्राज्य’ को ध्वस्त करने का वादा किया।

जेल से भी चलता रहा अतीक का नेटवर्क

अतीक को उसके गढ़ इलाहाबाद से राज्य की देवरिया जेल ले जाया गया। देवरिया जेल में अतीक ने अपना साम्राज्य चलाया और एक व्यापारी मोहित जायसवाल का अपहरण कराकर जेल में बुलाया। उससे संपत्ति के कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करवाए गए और बेरहमी से पिटाई भी की। इसके बाद अतीक को बरेली जेल ले जाया गया लेकिन जेल अधीक्षक डर गए और उसे वहां नहीं रखना चाहते थे। अप्रैल 2019 में कड़ी सख्ती के बीच योगी सरकार ने अतीक को प्रयागराज की नैनी जेल में शिफ्ट कर दिया। इस समय तक सुप्रीम कोर्ट ने देवरिया जेल मामले में अपना फैसला सुना दिया और अतीक को गुजरात के साबरमती जेल शिफ्ट करने का आदेश दिया।

अतीक के संकट के दिन

अतीक अहमद के खिलाफ जबरन वसूली,अपहरण और हत्या सहित 100 से अधिक मामले दर्ज थे, हालांकि अधिकतर केसेज में वो अदालत से बरी हो चुका था। राजू पाल की हत्या के एक गवाह उमेश पाल के अपहरण में उसे पहली बार मार्च 2023 में आजीवन कारावास की सजा मिली थी। विडंबना ये रही है कि उमेश पाल की हत्या के एक महीने बाद सजा सुनाई गई। अतीक अहमद का अपराध और राजनीति के बीच मजबूत कड़ी रही। उसने अपने अंडरवर्ल्ड साम्राज्य को बचाने और विस्तार करने के लिए चतुराई से राजनीति का इस्तेमाल किया था। जेल में उसका रहना लंबा हो रहा था। यही वजह है कि अतीक ने अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को बसपा में शामिल करा दिया, क्योंकि पूजा पाल भाजपा में शामिल हो गई थीं। हालांकि उसका खेल काम नहीं आया। उमेश पाल की हत्या के आरोप में नामित होने के कारण उसे आगामी मेयर चुनाव में टिकट नहीं दिया गया।

अतीक के बेटे भी अपराध की दुनिया से प्रभावित

अतीक के बेटे भी उसके नक्शेकदम पर चलने लगे। अतीक का बड़ा बेटा उमर 2018 में लखनऊ के एक व्यवसायी मोहित जायसवाल से जबरन वसूली, हमला करने और अपहरण करने के आरोप में जेल में बंद है। उमर ने पिछले साल अगस्त में सीबीआई के सामने सरेंडर किया था। वह इस समय लखनऊ की जेल में है। अतीक का दूसरा बेटा अभी भी जेल में है। उसके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है। उसे हाल ही में उस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली थी लेकिन उसके खिलाफ फिरौती का एक और मामला दर्ज हो गया। वह प्रयागराज के नैनी जेल में शहर के एक प्रापर्टी डीलर से पांच करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने के आरोप में बंद है। तीसरे बेटे असद को पिछले हफ्ते एक मुठभेड़ में मार दिया गया। अतीक के दो नाबालिग बेटे किशोर आश्रय गृह में बंद हैं। 15 अप्रैल की रात प्रयागराज मेडिकिल कॉलेज में तीन युवकों ने अतीक और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि अतीक के बेटे असद के मारे जाने के 72 घंटे के भीतर ऐसा हो जाएगा।

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